है जुस्तुजू कि खूब से है खूबतर कहाँ।
अब देखिये ठहरती है जाकर नज़र कहाँ।
*****
यारब इस इख्तिलात का अंजाम हो बखैर,
था उसको हमसे रब्त, मगर इस कदर कहाँ।
*****
इक उम्र चाहिए कि गवारा हो नैशे-इश्क,
रक्खी है आज लज़्ज़ते-ज़ख्मे-जिगर कहाँ।
*****
हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और,
आलम में तुझसे लाख सही, तू मगर कहाँ।
*****
होती नहीं कुबूल दुआ तरके-इश्क की,
दिल चाहता न हो तो ज़बाँ में असर कहाँ।
*****
'हाली' निशाते-नग्मओ-मय ढूंढते हो अब,
आये हो वक्ते-सुब्ह रहे रात भर कहाँ।
******************
2 टिप्पणियां:
हम जिस पे मर रहे हैं वो है बात ही कुछ और,
आलम में तुझसे लाख सही, तू मगर कहाँ।
bahut sundar
बहुत बढिया!!!
हाली' निशाते-नग्मओ-मय ढूंढते हो अब,
आये हो वक्ते-सुब्ह रहे रात भर कहाँ।
एक टिप्पणी भेजें