सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

अहले-दिल और भी हैं अहले-वफ़ा और भी हैं. / साहिर लुधियानवी

अहले-दिल और भी हैं अहले-वफ़ा और भी हैं.
एक हम ही नहीं दुनिया से खफ़ा और भी हैं.
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क्या हुआ गर मेरे यारों की ज़बानें चुप हैं,
मेरे शाहिद मेरे यारों के सिवा और भी हैं.
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हम पे ही ख़त्म नहीं मसलके-शोरीदा-सारी,
चाक-दिल और भी हैं चाक-क़बा और भी हैं.
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सर सलामत है तो क्या संगे-मलामत की कमी,
जान बाक़ी है तो पैकाने-क़ज़ा और भी हैं.
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मुन्सिफे-शहर की वहदत पे न हर्फ़ आ जाए,
लोग कहते हैं की अरबाबे-जफा और भी हैं.
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शब्दार्थ : अहले-दिल= सहृदय. अहले-वफ़ा= प्रेम में खरे. खफ़ा=रुष्ट. शाहिद=साक्षी. मसलक=सम्प्रदाय. शोरीदा-सरी= प्रतिरोध करना. सलामत=सुरक्षित. संगे-मलामत=निंदा के पत्थर. पैकान=तीर. क़ज़ा=मृत्यु. वहदत=अद्वितीय होने की स्थिति,एकत्व.

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