बारिश हुई तो घर की बिज़ाअत सिमट गई।
हालात के संवरने की उम्मीद घट गई।
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खिड़की पे आके चाँद ने देखा मेरी तरफ़,
मासूम चाँदनी मेरे तन से लिपट गई।
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सिन्फ़े-लतीफ़ ने वो करिश्मा दिखा दिया,
हैराँ थे सब, बिसाते-सियासत उलट गई।
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शायद तअलुक़ात को होना था खुशगवार,
अच्छा हुआ कि बीच से दीवार हट गई।
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मायूस सब थे, बस वो अकेला था मुत्मइन,
कुदरत का खेल देखिये बाज़ी पलट गई।
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औरों की तर्ह वो भी हुआ जबसे शर-पसंद,
उस्की तरफ़ से मेरी तबीयत उचट गई।
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तहजीब ने दिखाए करिश्मे नये-नये,
इन्सां की नस्ल कितने ही टुकडों में बँट गई।
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