गुरुवार, 30 अक्तूबर 2008

तक़द्दुस का पहेनकर खोल हैवाँ रक़्स करता है.

तक़द्दुस का पहेनकर खोल हैवाँ रक़्स करता है।
निगाहें देखती हैं यूँ भी इन्सां रक़्स करता है।

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मेरे घर में दरिन्दे घुस गये मैं कुछ न कर पाया,
मेरा घर अब कहाँ! अब तो बियाबाँ रक़्स करता है।

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समंदर की खमोशी कह रही है कुछ तो होना है,
कहीं गहराइयों में एक तूफाँ रक़्स करता है।

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इबादतगाहों के साए में भी शैतान पलते हैं,
तमाशा देखता है धर्म, ईमाँ रक़्स करता है।

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चलो इस शहर से ये शहर तो पागल बना देगा,
यहाँ हर शख्स बिल्कुल होके उर्यां रक्स करता है.
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तक़द्दुस = पवित्रता, खोल = आवरण, दरिन्दे = चीर-फाड़ करने वाले पशु, रक़्स =नृत्य, उर्यां = नग्न.

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