गुरुवार, 9 अक्तूबर 2008

ग़म की बारिश ने भी / मुनीर नियाज़ी

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं।
तू ने मुझको खो दिया, मैंने तुझे खोया नहीं।
*******
नींद का हल्का गुलाबी सा खुमार आंखों में था,
यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं।
*******
हर तरफ़ दीवारोदर और उनमें आंखों का हुजूम,
कह सके जो दिल की हालात वो लबे-गोया नहीं।
*******
जुर्म आदम ने किया, और नसले-आदम को सज़ा,
काटता हूँ ज़िन्दगी भर मैंने जो बोया नहीं।
*******
जानता हूँ एक ऐसे शख्स को मैं भी मुनीर,
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं।
********************

1 टिप्पणी:

अमिताभ मीत ने कहा…

ग़म की बारिश ने भी तेरे नक़्श को धोया नहीं।
तू ने मुझको खो दिया, मैंने तुझे खोया नहीं।

जानता हूँ एक ऐसे शख्स को मैं भी मुनीर,
ग़म से पत्थर हो गया लेकिन कभी रोया नहीं।

बहुत उम्दा ग़ज़ल.