रविवार, 19 अक्तूबर 2008

बेवफ़ाई / परवीन शाकिर

हमारे दरमियाँ ऐसा कोई रिश्ता नहीं था.
तेरे शानों पे कोई छत नहीं थी,
मेरे ज़िम्मे कोई आँगन नहीं था.
कोई वादा तेरी ज़ंजीरे-पा बनने नहीं पायी,
किसी इक़रार ने मेरी कलाई को नहीं थामा,
हवाए-दश्त की मानिन्द
तू आजाद था,
रस्ते तेरे, मंजिल के ताबे थे,
मुझे भी अपनी तनहाई पे
देखा जाय तो
पूरा तसर्रुफ़ था.
मगर जब आज तूने रास्ता बदला,
तो कुछ ऐसा लगा मुझको,
की जैसे तूने मुझ से बेवफ़ाई की.
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3 टिप्‍पणियां:

विधुल्लता ने कहा…

परवीन शाकिर जैसी शायरा मीना जी के बाद अकेली हैं अपने बेंतहा दर्द को खजाना बननेवाली उनकी शायरी किसी दूसरी दुनिया की सौगात हैं ,जो वो हमें दे गई हैं..आपका शुक्रिया,

manvinder bhimber ने कहा…

तू आजाद था,
रस्ते तेरे, मंजिल के ताबे थे,
मुझे भी अपनी तनहाई पे
देखा जाय तो
पूरा तसर्रुफ़ था.
मगर जब आज तूने रास्ता बदला,
तो कुछ ऐसा लगा मुझको,
की जैसे तूने मुझ से बेवफ़ाई की.
bahut sunder

अमिताभ मीत ने कहा…

वाह ! क्या बात है !! बहुत सुंदर.