रविवार, 19 अक्तूबर 2008

समंदर चाँद को आगोश में लेकर तड़पता है.

समंदर चाँद को आगोश में लेकर तड़पता है.
तुम्हारे साथ रहने पर भी दिल अक्सर तड़पता है.
ख़बर तुमको नहीं जब तुम नहीं आते कई दिन तक,
मकाँ बेचैन हो जाता है, दर खुलकर तड़पता है.
तुम्हारी गुफ्तुगू सुनकर मुझे महसूस होता है,
उतरने के लिए गोया कोई खंजर तड़पता है.
हुआ सरज़द ये कैसा जुर्म इस गुस्ताख आंधी से,
चमन में गुल परीशां, बागबाँ बाहर तड़पता है,
तमाशा है कि छू-छू कर तुम्हारे जिस्मे-नाज़ुक को,
न जाने सोचता है क्या कि हर ज़ेवर तड़पता है.
लरज़ जाता हूँ आवाजों से इसकी,काश तुम देखो,
खुदा जाने ये दिल है या कोई पत्थर तड़पता है।

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2 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

ये दिल है मुहब्बत का प्यासा, प्यार पाने को किस कदर तड़पता है.
क्या कोई इंसान के दिल की तड़प समझेगा???

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!