बुधवार, 6 अगस्त 2008

ई. सी. का इलेक्शन / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

इब्तिदाई अल्फ़ाज़
यूनिवर्सिटियों में एक्जीक्युटिव काउन्सिल और अकैडेमिक काउन्सिल, यूनिवर्सिटी से मुतअल्लिक़ तमाम इन्तिजामी और इल्मी फैसले करने के बाइस बेहद अहम् समझी जाती हैं. इसमें इलेक्शन के ज़रिये मुन्तखब उस्तादों की भी नुमाइंदगी होती है. इलेक्शन के ज़माने में उस्तादों के तब्सेरे सुनने से तअल्लुक़ रखते हैं. इस नज़्म में यही मंज़र-कशी की गई है. ज़ैदी जाफ़र रज़ा
गूं-गाँ से फिर आबाद हुआ अपना नशेमन
फिर शोर-शराबे का हुआ ज़ोर दनादन
फिर फ़न्ने-सियासत का वसी हो गया दामन
फिर मिल गया हर माहिए-बे-आब को जीवन
लो आ गया फिर घूम के ई. सी. का इलेक्शन

ज़ूलाजी का है ज़ोर, केमिस्ट्री की फबन है
तादाद पे इंजीनियरिंग अपनी मगन है
हर दिल में मगर साइकोलाजी की चुभन है
तब्दील अखाड़े में हुआ इल्म का मद्फ़न
लो आ गया फिर घूम के ई. सी.का इलेक्शन

कहता है कोई देखो वो क़ातिल है , न जीते
और उसको न दो वोट, वो जाहिल है, न जीते
सीधा है तो क्या, यारो वो पिल-पिल है, न जीते
अच्छे नहीं ये बाहमी तकरार के लच्छन
लो आ गया फिर घूम के ई. सी. का इलेक्शन

मेडिकोज़ की है राय कि हारेंगे नहीं हम
कहना है तबीबों का कि हम भी हैं नहीं कम
मैदान में है आर्ट्स फैकल्टी की भी छम-छम
सज धज के निकल आए गुलाब और करोटन
लो आ गया फिर घूम के ई. सी. का इलेक्शन
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