वो आंसू ही हमारे आख़िरी आंसू थे
जो हम ने गले मिलकर बहाए थे
न जाने वक़्त इन आंखों से फिर किस तौर पेश आया
मगर मेरी फरेबे-वक़्त की बहकी हुई आंखों ने
उसके बाद भी आंसू बहाए हैं
मेरे दिल ने बहोत से दुःख रचाए हैं
मगर यूँ ही
कि माहो-साल की इस रायगानी में
मेरी आँखें
गले मिलते हुए रिश्तों की फुरक़त के वो आंसू
फिर न रो पायीं !!
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शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
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