बुधवार, 27 अगस्त 2008

अपना सारा बोझ / इफ़्तेख़ार नसीम

अपना सारा बोझ ज़मीं पर फ़ेंक दिया
तुझको ख़त लिक्खा और लिख कर फेंक दिया
ख़ुद को साकिन देखा ठहरे पानी में
हरकत की ख्वाहिश थी, पत्थर फेंक दिया
दीवारें क्यों खाली-खाली लगती हैं
किसने सब कुछ घर से बाहर फेंक दिया
मैं तो अपना जिस्म सुखाने निकला था
बारिश ने क्यों मुझ पे समंदर फेंक दिया
वो कैसा था, उसको कहाँ पर देखा था
अपनी आंखों ने हर मंज़र फेंक दिया
******************************

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.