रविवार, 14 सितंबर 2008

धूप ने छाया से कानों में कहा

धूप ने छाया से कानों में कहा, शीतल हो तुम.
किंतु स्थिरता नहीं है, इसलिए बेकल हो तुम.
देख कर बादल को उड़ते, चाँद को आई हँसी,
मुस्कुराकर बोला सच ये है बहुत निश्छल हो तुम.
मन के संगीतज्ञ ने काया की वीणा से कहा,
कैसे छेड़ूँ तार, शायद नींद से बोझल हो तुम.
फूल के पास आके भंवरे ने मुहब्बत से कहा,
कितने पावन हो! मेरी नज़रों में गंगाजल हो तुम.
मेरे मन! मैं इस समय तुमसे न कुछ कह पाऊंगा,
ताज़ा-ताज़ा ज़ख्म हैं, पूरी तरह घायल हो तुम.
कूदने की ज़िद है क्यों इस ज़िन्दगी की आग में,
हो गया है क्या तुम्हें! क्या एकदम पागल हो तुम.

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1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया..आभार.