शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

वो अपरिचित भी नहीं है / शैलेश ज़ैदी

वो अपरिचित भी नहीं है और परिचित भी नहीं।
जानता हूँ मैं उसे, पर हूँ सुनिश्चित भी नहीं।
उसने भिजवाई थी मुझको सूचना, घर आएगा,
कैसे मैं स्वागत करुँगा, घर व्यवस्थित भी नहीं।
मानता हूँ मैं कि उसपर है भरोसा कम मुझे,
किंतु उसकी ओर से मन कुछ सशंकित भी नहीं।
ये समस्याएँ तो होती हैं सभी के सामने,
इन समस्याओं से मैं किंचित प्रभावित भी नहीं।
सोचता हूँ मैं कि यह सम्मान क्यों मुझको मिला,
मैं तो अपने देश में कुछ ऐसा चर्चित भी नहीं।
जिनका है सम्पूर्ण जीवन लांछनाओं से भरा,
देखता हूँ मैं कि वे नेता कलंकित भी नहीं।
**********************

कोई टिप्पणी नहीं: