मंगलवार, 9 सितंबर 2008

ख़्वाबों में समंदर देखते क्यों हो


उसे शिकवा है, ख्वाबों में समंदर देखते क्यों हो.
वो कहता है, ये आईना तुम अक्सर देखते क्यों हो.
कहा मैंने वफ़ाओं का तुम्हारी क्या भरोसा है,
कहा उसने कि सब कुछ रखके मुझपर देखते क्यों हो.
कहा मैंने किसानों की तबाही से है क्या हासिल
कहा उसने तबाही का ये मंज़र देखते क्यों हो.
कहा मैंने कि मेरे गाँव में सब फ़ाका करते हैं,
कहा उसने, कि तुम उजडे हुए घर देखते क्यों हो.
कहा मैंने, तअल्लुक़ तुमसे रख कर जां को खतरा है,
कहा उसने, कि नादानों के तेवर देखते क्यों हो.
कहा मैंने, कि लगता है कोई तूफ़ान आयेगा,
कहा उसने, कि तुम खिड़की से बाहर देखते क्यों हो.
कहा मैंने, तुम्हारा जिस्म तो है नर्म रूई सा,
कहा उसने, मुझे तुम रोज़ छूकर देखते क्यों हो.
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[छाया-चित्र : सैयद, कैलिफोर्निया]

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

उसे शिकवा है, ख्वाबों में समंदर देखते क्यों हो.
वो कहता है, ये आईना तुम अक्सर देखते क्यों हो.

faatima jee, bahut achi or bahut sacchee panktiyaan!

Pooja Prasad

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

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आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.