शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

जय हिन्दी, जय देवनागरी /मगन अवस्थी

दो शब्द : आज हिन्दी दिवस की क्या उपयोगिता रह गई है, यह एक अलग प्रश्न है। किंतु हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के अनेक प्रेमी ऐसे हैं जो आज भी इसके प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित हैं। हिन्दी के प्रति यही प्रेम इस कविता में द्रष्टव्य है। [शैलेश ज़ैदी]
जय हिन्दी जय देवनागरी।
जय कबीर, तुलसी की वाणी, मीरा की वीणा कल्याणी।
सूरदास के सागर मंथन, की मणि-मंडित सुधा-गागरी।

जय रसखान, रहीम रसभरी, घनानंद, मकरंद, मधुकरी।
पदमाकर, मतिराम, देव के, प्राणों की मधुमय विहाग री।

भारतेंदु की विमल चाँदनी, रत्नाकर की रश्मि मादनी।
भक्ति, ज्ञान और कर्म-क्षेत्र की, भागीरथी भुवन उजागरी।

जय स्वतंत्र भारत की आशा, जय स्वतंत्र भारत की भाषा।
भारत जननी के मस्तक की, श्री शोभा कुमकुम सुहाग री।
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1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढिया.पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.