सोमवार, 1 सितंबर 2008

देश के स्वप्नों का एक नक्शा / शैलेश ज़ैदी

नर्म और गुदाज़ हाथों में
गुलाबों की सुगंध तलाश करना
सैकड़ों ऐसे हाथों को नकारना है
जो काँटों की चुभन का दर्द जी कर भी
गुलाबों की खेती करते हैं
खुशबुएँ उगाते हैं
और दिन-रात मरते हैं

यह हाथ !
न कभी हँसते हैं,
न गुनगुनाते हैं
बस देखते रहते हैं
अपनी खुरदुरी, लहूलुहान हथेलियों में
अपने देश के स्वप्नों का एक नक्शा।
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