मेरा ख़याल वो ख़ुद से भी ज़्यादा रखती है.
मिसाल उसकी नहीं है, वो मेरी बेटी है.
यक़ीन आपको आये न आये सच है यही,
उसी ने मुझको ये जीने की रोशनी दी है.
मुझे भी शुब्हा हुआ है,कि दिल-शिकन हूँ मैं,
उमीद जब किसी अपने की, मैंने तोडी है.
मैं अपने दौर का बन जाऊं हमनवा कैसे,
वही तो खर्च करूँगा जो मेरे पूँजी है.
ये मोजज़ा है, निकल आया हूँ मैं खैर के साथ,
भंवर में, दिल की ये कश्ती, कभी जो उलझी है.
मैं नर्म शाख नहीं था, लचक-लचक जाता,
कलाई मेरी, बहोत वक़्त ने मरोड़ी है.
मेरे शऊर को है नक़्शे-लामकां की तलाश,
जहाँ न अरजो-समाँ हैं, न जिस्मे-खाकी है.
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दिल-शिकन=ह्रदय तोड़ने वाला, हमनवा=एकस्वर, मोजज़ा=दैवी चमत्कार, शऊर=विवेक, नक़्शे-लामकां=महाशून्य का चिह्न, अरजो-समाँ=धरती और आकाश, जिस्मे-खाकी=मिटटी का शरीर.
शनिवार, 7 फ़रवरी 2009
मेरा ख़याल वो ख़ुद से भी ज़्यादा रखती है.
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2 टिप्पणियां:
वह साहब मतला ही इतना कमाल का है के क्या कहने ,साथ में कौन सा शे'र कहूँ के वो कमाल का है बस ये है के ये पुरी ग़ज़ल ही कमाल की लिखी है आपने हर शे'र लाजवाब है ... ढेरो बधाई आपको...
अर्श
aafrin sundar
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