रविवार, 8 फ़रवरी 2009

ज़ुहल-वो-मुश्तरी थे एक बुर्ज में यकजा.

ज़ुहल-वो-मुश्तरी थे एक बुर्ज में यकजा.
मैं ऐसे वक़्त में पैदा हुआ तो हासिल क्या.
नुजूमियों की हैं पेशीन-गोइयाँ बेसूद.
नसीब होता है एह्सासो-फ़िक्र से पैदा,
मुझे रहा न कोई खौफ मुह्तसिब का कभी,
पिलाया साक़ी ने मुझको, मैं खूब पीता गया.
उरूज पाते हैं जिस दौर में भी रक़्सो-तरब,
ये लाज़मी है कि हो क़त्लो-खून भी बरपा.
मैं सोचता हूँ कि ऐसी जगह चला जाऊं,
कि जिसका हो न अज़ीज़ और अक़रुबा को पता.
**************

ज़ुहल=शनि, मुश्तरी=बृहस्पति, बुर्ज=गुम्बद/राशियों का घर, यकजा=एकत्र, हासिल=प्राप्त, [ कहा जाता है कि जब शनि और बृहस्पति एक ही बुर्ज में हों, उन क्षणों में जो जन्म लेता है, बहुत प्रतापी और तेजस्वी होता है]. नुजूमियों=ज्योत्षियों, पेशीनगोइयाँ=भविष्यवाणियाँ, बेसूद=व्यर्थ, नसीब=भाग्य, एह्सासो-फ़िक्र=अनुभूति और चिंतन,मुह्तसिब=मधुशाला की निगरानी करने वाला, उरूज=तरक्की/उन्नति, रक्सो-तरब=नृत्य और संगीत, लाज़मी=अनिवार्य, अज़ीज़=प्रिय-जन, अक़रुबा=निकट सम्बन्धी.

2 टिप्‍पणियां:

अनिल कान्त ने कहा…

बहुत ही जानदार लिखा है आपने .......कुछ शब्द समझ नही आए जिनका अर्थ नीचे देखा .....लेकिन काफ़ी उम्दा .....मजा आ गया

अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

बहुत ख़ूब! ख़ास तौर पर आख़िरी शेर ने ग़ालिब की याद दिला दी।:-
'पड़िये गर बीमार तो …'
बधाई।