रविवार, 1 फ़रवरी 2009

सुनाओ कोई कहानी कि रात कट जाए.

सुनाओ कोई कहानी कि रात कट जाए.
इसी तरह से है मुमकिन हयात कट जाए.
तुम्हारी बज़्म से उठ जाऊँगा अचानक मैं,
किसी की, बीच में ही जैसे बात कट जाए.
हमारे बच्चों की क़दरें बहोत हैं हमसे जुदा,
वुजूद से न किसी दिन ये ज़ात कट जाए.
पकड़ के रखते हैं मुहरों को लोग इस डर से,
जगह-जगह से न दिल की बिसात कट जाए.
फ़क़त वो ठूंठ सा होगा सभी की नज़रों में,
किसी शजर का अगर पात-पात कट जाए.
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2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

फ़क़त वो ठूंठ सा होगा सभी की नज़रों में,
किसी शजर का अगर पात-पात कट जाए.

--वाह वाह!! बहुत उम्दा बात कह डाली.

"अर्श" ने कहा…

हमारे बच्चों की क़दरें बहोत हैं हमसे जुदा,
वुजूद से न किसी दिन ये ज़ात कट जाए.

वर्तमान मौलिकता लिए है यह शे'र . हमेशा की तरह फ़िर से उम्दा लिखा है आपने ढेरो बधाई कुबूल फर्मंयें...

अर्श