शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

काव्य में अंतर्कथाएँ जो भी संदर्भित मिलीं.

काव्य में अंतर्कथाएँ जो भी संदर्भित मिलीं.
कुछ से हम अनभिज्ञ थे, पर कुछ बहुत चर्चित मिलीं.
उसके वक्तव्यों ने मुझको इस कदर प्रेरित किया,
कामियाबी की दिशाएँ सर्व-संभावित मिलीं.
जुगनुओं को घुप अंधेरों में हुई किसकी तलाश,
तितलियाँ दिन के उजालों तक ही क्यों सीमित मिलीं.
चाँदनी झरने में उतरी है नहाने के लिए,
सूर्य की किरनें भी दावानल से संवादित मिलीं.
दोपहर की धूप में मजदूर निर्धन औरतें,
अपनी काया से पसीना पोंछती, पीड़ित मिलीं.
मुद्दतों के बाद, जब आया मैं अपने गाँव में,
ज़िन्दगी की, भूमिकाएँ पूर्ण परिवर्तित मिलीं.
**************

1 टिप्पणी:

गौतम राजऋषि ने कहा…

शैलेश जी कितनी आसानी से हिंदी के इन क्लिष्ट शब्दों को भी आप उर्दू की इन प्रचलित बहरों पर बिठा लेते हैं।
मतला तो जबरदस्त है सर...
और ये शेर "जुगनुओं को घुप अंधेरों में हुई किसकी तलाश/तितलियाँ दिन के उजालों तक ही क्यों सीमित मिलीं" तो उफ़्फ़्फ़...
और फिर ये "सूर्य की किरनें भी दावानल से संवादित मिलीं.." वाली भी
फ़ातिमा जी से अनुरोध है कि जल्द-से जल्द किताब के प्रकाशन का आयोजन हो...