tag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post3861592526269161927..comments2023-08-03T08:13:15.576-07:00Comments on युग-विमर्श (YUG -VIMARSH) یگ ومرش: काव्य में अंतर्कथाएँ जो भी संदर्भित मिलीं.युग-विमर्शhttp://www.blogger.com/profile/05741869396605006292noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6753607008942686249.post-21446118591576569412009-02-14T07:24:00.000-08:002009-02-14T07:24:00.000-08:00शैलेश जी कितनी आसानी से हिंदी के इन क्लिष्ट शब्दों...शैलेश जी कितनी आसानी से हिंदी के इन क्लिष्ट शब्दों को भी आप उर्दू की इन प्रचलित बहरों पर बिठा लेते हैं। <BR/>मतला तो जबरदस्त है सर...<BR/>और ये शेर "जुगनुओं को घुप अंधेरों में हुई किसकी तलाश/तितलियाँ दिन के उजालों तक ही क्यों सीमित मिलीं" तो उफ़्फ़्फ़...<BR/>और फिर ये "सूर्य की किरनें भी दावानल से संवादित मिलीं.." वाली भी<BR/>फ़ातिमा जी से अनुरोध है कि जल्द-से जल्द किताब के प्रकाशन का आयोजन हो...गौतम राजऋषिhttps://www.blogger.com/profile/04744633270220517040noreply@blogger.com