रविवार, 15 फ़रवरी 2009

विवादों को न दो विस्तार उल्झेंगी समस्याएँ.

विवादों को न दो विस्तार उल्झेंगी समस्याएँ.
निकालो युक्ति ऐसी लुप्त हों सारी समस्याएँ.
कभी फूलों से हम कुछ बात करते, तो पता चलता,
कि उनके सामने हैं आजकल कैसी समस्याएँ.
स्वतः संकीर्णताएं मन से निष्कासित नहीं होतीं,
कि ये सायास हैं पाली गयी अंधी समस्याएँ.
अंधेरों में न पथ का सूझना सामान्य होता है,
उजालों में न पथ सूझे तो हैं भारी समस्याएँ.
हमारा आज हमसे कह रहा था बात-बातों म,
न सोचो ऐसे मुद्दों पर जो थे कल की समस्याएँ.
गगन में बिजलियाँ चमकें तो स्वाभाविक सा लगता है,
किसी के मन में ऐसा हो तो हैं तीखी समस्याएँ.
मेरी कवि-मित्र ने मुझसे कहा मन में दुखी होकर,
ग़ज़ल कहने में हैं शैलेश जीटेढी समस्याएँ।

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1 टिप्पणी:

Vinay ने कहा…

बहुत अच्छी रचना है!