शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

हिन्दी ग़ज़ल ने उर्दू का घूंघट उठाया है.

हिन्दी ग़ज़ल ने उर्दू का घूंघट उठाया है.
आवाज़ आ रही है कि साजन पराया है.
शब्दों को ज़ेवरों की तरह छीन ले गया,
व्यवहार उसने मुझसे पुराना निभाया है.
आवारगी का रख दिया इल्ज़ाम मेरे सर,
आवारगी में जब कि स्वयं वो नहाया है.
मुझमें वो खोज लेता है अश्लीलता की बात,
बदनाम करने का ये नया ढंग लाया है.
कितनी ही सदियाँ हैं मेरे किरदार की गवाह,
ये ऐसा सत्य है जिसे सबने छुपाया है.
इतिहास मेरा भूल के, अपनों ने ही मुझे,
भाषा के कारावास में बंदी बनाया है.
मैं अपने संस्कारों से जीवित हूँ आज तक,
मुझको युवा समाज ही पहचान पाया है.
सच बोलियेगा, ऐसी कहीं मिल सकी मिठास,
गालिब को आपने भी बहुत गुनगुनाया है.
मैं चुप हूँ बस ये सोच के, आयेगा एक दिन.
देखेंगे सब कि मेरा ही वर्चस्व छाया है।
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1 टिप्पणी:

गौतम राजऋषि ने कहा…

"सच बोलियेगा, ऐसी कहीं मिल सकी मिठास,
गालिब को आपने भी बहुत गुनगुनाया है"
बहुत खूब सर...