दीप से दीप जलने की संभावना अब नहीं रह गई.
चित्त में प्रज्ज्वलित थी जो संवेदना अब नहीं रह गई.
*******
आरती के सभी शब्द अधरों पे ही नृत्य करते रहे,
चीर कर मन निकलती थी जो प्रार्थना, अब नहीं रह गई.
*******
अब नहीं होतीं तेजस्वियों की सभाएं किसी मोड़ पर,
जिसमें चिंतन-मनन हो वो उदभावना अब नहीं रह गई.
*******
बाप बेटे, बहेन भाई माँ और बाबा सभी बँट गए,
एक जुट स्वस्थ परिवार की कल्पना अब नहीं रह गई,
*******
सबकी काया में आतंकवादी शरण ले रहे हैं कहीं,
एक की दूसरे के लिए सांत्वना अब नहीं रह गई.
*******
जिसको जो चाहिए बेझिझक आपसे छीन लेता है वो,
कोई बिनती-सुफारिश, कोई याचना अब नहीं रह गई.
*******
लक्ष्य पर दृष्टि पहले की सूरत ही सबकी है अब भी मगर,
लक्ष्य की प्राप्ति में अनवरत साधना अब नहीं रह गई.
**************
मंगलवार, 9 दिसंबर 2008
दीप से दीप जलने की संभावना अब नहीं रह गई.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
सौ फीसदी सहमत हूँ जी
'लक्ष्य पर…' आज का कड़वा सच!
बधाई।
एक टिप्पणी भेजें