मंगलवार, 23 दिसंबर 2008

सच है कि मैंने आपको समझा कुछ और है.

सच है कि मैंने आपको समझा कुछ और है.
दर-अस्ल मुझको आपसे खदशा कुछ और है.
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गहराई में उतरिये तो क़िस्सा कुछ और है.
इस हादसे के पीछे करिश्मा कुछ और है.
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कहते हैं ज़लज़ले ने मेरा घर गिरा दिया,
हालात का अगरचे इशारा कुछ और है.
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क्यों आज-कल वो मिलाता है बेहद खुलूस से,
कहता है दिल कि उसकी तमन्ना कुछ और है.
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हैरत से देखता हूँ ज़माने की मैं रविश,
उस वाक़ए पे इन दिनों चर्चा कुछ और है.
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करता रहा हूँ वैसे तो उस खुश-अदा की बात,
पर क्या करुँ ग़ज़ल का तकाजा कुछ और है.
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मेरी नज़र कहीं पे है उसकी नज़र कहीं,
कहता हूँ मैं कुछ और समझता कुछ और है.
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सब कुछ तो कह दिया है हुज़ूर आपने मुझे,
अब वो भी कह दें आप जो सोंचा कुछ और है.
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