बुधवार, 31 दिसंबर 2008

रात आई है बलाओं से रिहाई देगी / मसऊद अनवर

रात आई है बलाओं से रिहाई देगी।

अब न दीवार न ज़ंजीर दिखायी देगी।

वक़्त गुज़रा है, पे मौसम नहीं बदला यारो,

ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी।

ये धुंधलका सा जो है इसको गनीमत जानो,

देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी।

दिल जो टूटेगा तो इकतरफा तमाशा होगा,

कितने आईनों में ये शक्ल दिखायी देगी।

साथ के घर में बड़ा शोर है बरपा अनवर,

कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी।

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2 टिप्‍पणियां:

Sanjeev Mishra ने कहा…

ये धुंधलका सा जो है इसको गनीमत जानो, देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी।
Bahut khub bandhu .Bahut sundar .
Badhayee sweekar.

roushan ने कहा…

उम्मीद है तो दुनिया कायम है
आपको शुभकामनाएं