ये है बाजारवादी तंत्र, जादू इसका गहरा है.
ये भीतर जो भी हो, बाहर सुनहरा ही सुनहरा है.
*******
चला जाता है बस अपनी ही धुन में होके बे-पर्वा,
किसी की कुछ नहीं सुनता, समय कानों से बहरा है.
*******
हमारी कोरी भावुकता, हमें कुछ दे न पायेगी,
हमारी राह में कुछ दूर तक जंगल हैं, सहरा है.
*******
मुहब्बत के किले में क़ैद करके मुझको वो खुश है,
जिधर भी देखता हूँ उसकी ही यादों का पहरा है.
*******
हमारा उसका समझौता,किसी सूरत नहीं होगा,
कभी वो बात कोई मानकर कब उसपे ठहरा है.
**************
शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008
ये है बाजारवादी तंत्र, जादू इसका गहरा है.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
ये है बाजारवादी तंत्र, जादू इसका गहरा है....सटीक लिखा है।
'ये भीतर जो भी हो बाहर सुनहरा ही सुनहरा है'कैसा सटीक चित्रण किया है 'मार्केट इकॉनॉमी' का! हार्दिक बधाई।
मुहब्बत के किले में क़ैद करके मुझको वो खुश है,
जिधर भी देखता हूँ उसकी ही यादों का पहरा है.
बहोत ही सटीक लिखा है आपने बहोत खूब ढेरो बधाई आपको
अर्श
एक टिप्पणी भेजें