बुधवार, 10 दिसंबर 2008

जिस शिखर पर तुम खड़े हो

जिस शिखर पर तुम खड़े हो, कल्पनाओं का शिखर है.
जान लो यह भ्रष्ट कुत्सित श्रृंखलाओं का शिखर है.

तुमने इस धरती की ऊर्जा, को कभी समझा नहीं है.
मर्म में इसके सहजता से, कभी झाँका नहीं है.

धर्म की संकीर्णताओं से नहीं सम्बन्ध इसका.
भक्तिमय अनुशासनों के साथ है अनुबंध इसका.

प्रेम है आधार इसकी सात्त्विक ओजस्विता का.
चिह्न है पारस्परिक सौहार्द इसकी अस्मिता का.
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1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

धर्म की संकीर्णताओं से नहीं सम्बन्ध इसका.
भक्तिमय अनुशासनों के साथ है अनुबंध इसका.


-बहुत सही!!