मुख्यधारा से इतर जितना भी जल सागर में है.
वह भी सागर ही है, वह प्रत्येक पल सागर में है.
*******
मुख्य धारा में कभी मोती कोई मिलाता नहीं,
गहरे उतरोगे तो पाओगे वो उसके तल में है.
*******
गर्भ में सागर के पलते हैं कई ज्वाला मुखी,
और तूफानों का इक संसार वक्षस्थल में है.
*******
देखिये आकाश से धरती के रिश्तों को कभी,
ज़िन्दगी सागर की हर पानी भरे बादल में है.
*******
लहरें सागर की सुनामी हों तो निश्चित है विनाश,
कितने गहरे रोष की अभिव्यक्ति इस हलचल में है.
*******
देखना आसान है साहिल से सागर का बहाव,
साहसी है वो जो लहरों के सलिल आंचल में है.
**************
गुरुवार, 11 दिसंबर 2008
मुख्यधारा से इतर जितना भी जल सागर में है.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
1 टिप्पणी:
बहुत बढ़िया !
घुघूतीबासूती
एक टिप्पणी भेजें