यही मौसम वहाँ होगा, यही क़िस्से वहाँ होंगे।
कहीं बेचैनियाँ होंगी, कहीं आतश-फिशां होंगे।
हमारी अम्न की बातें, महज़ झूठी तसल्ली हैं,
न गुज़रेंगे अगर जंगों से कैसे शादमां होंगे।
तरक्की-याफ़ता कौमों की बातों का भरोसा क्या,
अभी हमसे हैं मिलते, कल खुदा जाने कहाँ होंगे।
ख़याल इस बात का रखना भी हमको लाज़मी होगा,
वही कल होंगे दुश्मन आजके जो राज़दाँ होंगे।
हमें अंजाम भी मालूम है अक़दाम का अपने,
यहाँ कुछ खूँ-चकां होंगे, वहाँ कुछ खूँ-चकां होंगे।
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4 टिप्पणियां:
बड़ी संजीदा और उम्दा ग़ज़ल है
---आपका हार्दिक स्वागत है
चाँद, बादल और शाम
आखिरी शे'र बेहद उम्दा है ढेरो बधाई आपको साहब...
अर्श
'हमारी अम्न की बातें…'
बहुत ख़ूब! जॉर्ज ऑर्वेल की याद दिला दी आपने।
सुभानल्लाह साब "ख़याल इस बात का रखना भी हमको लाज़मी होगा / वही कल होंगे दुश्मन आजके जो राज़दाँ होंगे"
बहुत खूब
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