शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

उस शख्स को भी फ़िक्रो-नज़र की तलाश है.

उस शख्स को भी फ़िक्रो-नज़र की तलाश है.
जिसको बस एक छोटे से घर की तलाश है.
आंखों में उसकी, देखिये, बेचैनियाँ हैं साफ़,
शायद नदी को, ज़ादे-सफ़र की तलाश है.
गोशे में एक, उसका भी, अखबार में है नाम,
वो खुश है, उसको अपनी ख़बर की तलाश है.
ये बाजुओं में प्यार से भर लें न चाँद को,
इन बादलों को नकहते-तर की तलाश है.
सर-सब्ज़ पत्तियों में भी दहका सके जो आग,
मुद्दत से एक ऐसे शजर की तलाश है.
कर देंगे हम इस आहनी दीवार में शिगाफ,
हिम्मत न हारेंगे, हमें दर की तलाश है.
कुछ इन्क़लाब आये, कहीं बदले कुछ निज़ाम,
नौए-बशर को, ज़रो-ज़बर की तलाश है.
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2 टिप्‍पणियां:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

सरसब्ज़ पत्तियों से निकलती हो जिसके आग,
मुद्दत से एक ऐसे शजर की तलाश है.

इरशाद.

Vinay ने कहा…

बहुत ख़ूब, बहुत सुन्दर रचना की तलाश है, जो पूरी हो गयी है