बुधवार, 21 जनवरी 2009

नदी के जल से वंचित थे, नदी के पास रहकर भी.

नदी के जल से वंचित थे, नदी के पास रहकर भी.
मगर व्यक्तित्व से उनके, उमड़ता था समुन्दर भी.
नहीं बस कर्बला ईराक़ के भूगोल का हिस्सा,
ये है बलिदान के इतिहास का जीवित धरोहर भी.
झुका पाया न सर सच्चाइयों के उन प्रतीकों का,
यज़ीदी सैन्य-दल आतंकवादी मार्ग चुनकर भी.
मुसलमाँ थे मुहम्मद के नवासे के सभी क़ातिल,
मुसलामानों की दहशतगर्दियों का है ये मंज़र भी.
किसी समुदाय की संवेदनाएँ ही जो मर जाएँ,
तो फिर सच-झूठ का बाक़ी न रह जायेगा अन्तर भी.
हुसैनी दार्शनिकता ताज़ियों से है प्रतीकायित,
ये भारत है, हुसैनीयत का इस धरती पे है घर भी.
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मुहर्रम और इमाम हुसैन की कर्बला में शहादत को केन्द्र में रख कर यह ग़ज़ल कही गई है.

2 टिप्‍पणियां:

गौतम राजऋषि ने कहा…

उफ्फ्फ्फ...जैदी साब,किन शब्दों में तारीफ करूं इस गज़ल की। कहर ढ़ाता मतला,आग उगलते हर शेर....
नहीं बस कर्बला ईराक़ के भूगोल का हिस्सा,
ये है बलिदान के इतिहास का जीवित धरोहर भी.

क्या खूब---वाह!

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

'हुसैनी दार्शनिकता…'
इस्लाम के 'Indianization'का सुन्दर चित्रण।
'मुसलमाँ थे…'सच ही आतंकवादी मज़हब के नाम का इस्तेमाल अपने सियासी मकासिद हासिल करने के लिये ही करते हैं।