बुधवार, 21 जनवरी 2009

करूँ अर्ज़े-तमन्ना वो इजाज़त दे अगर मुझको।

करूँ अर्ज़े-तमन्ना वो इजाज़त दे अगर मुझको।

अता की उसने आख़िर क्यों तमीजे-खैरो-शर मुझको।

उसूलों पर रहा क़ायम तो क़ीमत भी चुकाई है,

मिली है कैदखानों में अज़ीयत किस कदर मुझको।

ग़लत राहों पे ले जाने की कोशिश सबने कर डाली,

मिले वक़्तन-फ़वक़्तन कैसे-कैसे राहबर मुझको।

किसी के साथ रिश्तों में दरारें पड़ नहीं पायीं,

न कस पाये शिकंजों में किसी पल मालो-ज़र मुझको।

मैं चाहूँगा तुम्हारी हसरतें तशना न रह जाएँ,

कोई साज़िश करो ऐसी चढ़ा दो दार पर मुझको।

ज़मीनों ने दिये इखलास से तखलीक के जौहर,

समंदर ने अता कीं वुसअतें दिल खोलकर मुझको।

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1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

bahot khub bahot bahot badhai aapko ,behatarin gazal ke liye,........


arsh