वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में.
उसे क्या पता था दबा हूँ मैं, कहीं हादसों के गुबार में.
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वही चाँदनी जो अभी-अभी, मेरे सह्न में थी थिरक रही,
उसे आके ले उड़ी क्यों हवा, घने बादलों के गुबार में.
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उन्हें लोग पूछते तक नहीं, जिन्हें फ़ख्र अपनी खुदी पे था,
वो पड़े हुए हैं अलग-थलग, वहाँ ख़ुद-सरों के गुबार में.
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वो गरीब जिनके घरों में अब, हैं गुज़रते फ़ाकों में रोजो-शब,
वो हैं कैदखानों में बेसबब, कहीं मुजरिमों के गुबार में.
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जो लिखे थे उसने मुझे कभी, वो खुतूत मेरी थे मिलकियत,
मैं तलाशता रहा देर तक, उसे उन खतों के गुबार में.
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वो नुकूश जितने थे सल्तनत के, वो ख़ाक-ख़ाक से हो गए,
वो हयात जिसपे गुरूर था, वो है खंडहरों के गुबार में.
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शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में,
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4 टिप्पणियां:
वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में.
उसे क्या पता था दबा हूँ मैं, कहीं हादसों के गुबार में.
" very touching and impressive composition"
Regards
वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में.
उसे क्या पता था दबा हूँ मैं, कहीं हादसों के गुबार में.
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वही चाँदनी जो अभी-अभी, मेरे सह्न में थी थिरक रही,
उसे आके ले उड़ी क्यों हवा, घने बादलों के गुबार में.
बहुत ही दिलकश...
वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में.
उसे क्या पता था दबा हूँ मैं, कहीं हादसों के गुबार में.
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वही चाँदनी जो अभी-अभी, मेरे सह्न में थी थिरक रही,
उसे आके ले उड़ी क्यों हवा, घने बादलों के गुबार में.
बहुत ही दिलकश...
वो तलाश करता रहा मुझे, नए मौसमों के गुबार में.
उसे क्या पता था दबा हूँ मैं, कहीं हादसों के गुबार में.
*******
वही चाँदनी जो अभी-अभी, मेरे सह्न में थी थिरक रही,
उसे आके ले उड़ी क्यों हवा, घने बादलों के गुबार में.
बहुत ही दिलकश...
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