जहाँ विचारों को अनुकूल हम नहीं पाते.
वो बात कैसी भी हो, उसमें दम नहीं पाते.
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विचार के लिए आधार चाहिए कुछ तो,
ज़मीं हो खोखली, तो पाँव जम नहीं पाते.
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वो भावनाएं ही क्या, जिनमें हो न कोई नमी,
वो दिल भी दिल है कोई, जिसमें ग़म नहीं पाते.
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सुना है स्वस्थ दिशाओं में बढ़ने वालों के,
क़दम जो उठ गए, ख़तरों से थम नहीं पाते.
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वो बात करते हो क्यों जो समय के साथ नहीं,
न घन चलाओ, जो लोहा गरम नहीं पाते.
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कोई भी घटना घटित हो, प्रभावहीन सी है,
अब ऐसी बातों से बच्चे सहम नहीं पाते.
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वो लिख रहे हैं, नहीं लिखना चाहते जिसको,
हम अपने हाथों में अपना क़लम नहीं पाते.
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बुधवार, 12 नवंबर 2008
जहाँ विचारों को अनुकूल हम नहीं पाते.
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