मैं सवालों से घिरा था, और लब खामोश थे.
जिंदगी ठहरी हुई थी, रोजो-शब खामोश थे.
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उसके मयखाने का जाने कैसा ये दस्तूर था,
जाम रिन्दों के थे खाली, फिर भी सब खामोश थे.
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शख्सियत उसकी थी कुछ ऐसी कि उसके सामने,
बुत की सूरत सब खड़े थे बा-अदब, खामोश थे.
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ऐसे बे-हिस भी न थे हम, हाँ बहोत मजबूर थे,
जाने क्यों लोगों ने समझा बे-सबब खामोश थे.
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हमको ऊंची ज़ात वालों ने कुचल कर रख दिया,
लब हिला सकते न थे, बेबस थे, जब खामोश थे.
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चाँदनी के रक्से-बिस्मिल पर था मैं हैरत-ज़दा,
लालओ-गुल देखकर ऐसा गज़ब, खामोश थे.
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गुरुवार, 6 नवंबर 2008
मैं सवालों से घिरा था, और लब खामोश थे.
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2 टिप्पणियां:
मैं सवालों से घिरा था, और लब खामोश थे.
जिंदगी ठहरी हुई थी, रोजो-शब खामोश थे.
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उसके मयखाने का जाने कैसा ये दस्तूर था,
जाम रिन्दों के थे खाली, फिर भी सब खामोश थे.
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शख्सियत उसकी थी कुछ ऐसी कि उसके सामने,
बुत की सूरत हम खड़े थे बा-अदब, खामोश थे.
बहुत ख़ूब...
मैं सवालों से घिरा था, और लब खामोश थे.
जिंदगी ठहरी हुई थी, रोजो-शब खामोश थे.
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उसके मयखाने का जाने कैसा ये दस्तूर था,
जाम रिन्दों के थे खाली, फिर भी सब खामोश थे.
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शख्सियत उसकी थी कुछ ऐसी कि उसके सामने,
बुत की सूरत हम खड़े थे बा-अदब, खामोश थे.
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ऐसे बे-हिस भी न थे हम, हाँ बहोत मजबूर थे,
जाने क्यों लोगों ने समझा बे-सबब खामोश थे
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हमको ऊंची ज़ात वालों ने कुचल कर रख दिया,
लब हिला सकते न थे, बेबस थे, जब खामोश थे.
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चाँदनी के रक्से-बिस्मिल पर था मैं हैरत-ज़दा,
लालओ-गुल देखकर ऐसा गज़ब, खामोश थे.
जब तलक खामोश थे तेरे लब,
तेरी खामोशी बयां करती थी ,
तेरे जज्बात की गहराई को ,
सजदे का माहौल था मयखाने में |
तौबा-तौबा,टूटना तेरी खामोशी का,
?????????????????????
"हमको ऊंची ज़ात वालों ने कुचल कर रख दिया,
लब हिला सकते न थे, बेबस थे, जब खामोश थे
[img]http://img145.echo.cx/img145/1536/sc0734ig.gif[/img]
सिलसिले को तो याद रखा करो अगरचे किसी की शख्शियत से बा अदब हो कर खामोश हैं तो फ़िर किसी पर इल्जाम कैसा ?
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