पानी भरा हुआ कोई बादल है ज़िन्दगी.
बरसे कहाँ कि ज़ख्मों से बोझल है ज़िन्दगी.
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इतने पड़े हैं काम समेटे तो किस तरह.
दो-चार रोज़ की ही तो हलचल है ज़िन्दगी,
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मुमकिन नहीं लिबास बदल ले किसी तरह
अश्कों में सर से पाँव तलक शल है ज़िन्दगी.
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राहों में कैसे-कैसे नशेबो-फ़राज़ हैं,
पल-पल यहाँ पे मौत है, पल-पल है ज़िन्दगी.
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जब प्यार मिल रहा था तो बेहद सुकून था,
अब नफरतें मिली हैं तो पागल है ज़िन्दगी,
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समझेंगे क्या वो फ़ाका-कशों की ज़रूरतें,
आंखों में जिनकी नर्म सा मख़मल है ज़िन्दगी.
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साँसों के आने-जाने का है सिल्सिला मगर,
मैं देखता हूँ कब से मुअत्तल है ज़िन्दगी.
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रविवार, 9 नवंबर 2008
पानी भरा हुआ कोई बादल है ज़िन्दगी.
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2 टिप्पणियां:
@"जब प्यार मिल रहा था तो बेहद सुकून था,
अब नफरतें मिली हैं तो पागल है ज़िन्दगी,"
यही यथार्थ है. प्यार खुदा ने बनाया इसलिए सुकून देता है. नफरत शैतान ने बनाई इसलिए पागल कर देती है.
bahut sundar
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