जितनी चाहो नफरतें हमसे करो क्या पाओगे.
हम वो हैं हमको हमेशा मुस्कुराता पाओगे.
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खून के धब्बे हैं दामन पर बदल डालो लिबास,
वरना दुनिया की नज़र में ख़ुद को रुसवा पाओगे.
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तुम समझते हो हमें दुश्मन, चलो दुश्मन सही,
वक़्त आयेगा तो हम जैसों को अपना पाओगे.
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आओ देखो उस तरफ़ सूरज अभी होगा तुलू,
सुब्ह की किरनों में हर ज़र्रा नहाया पाओगे.
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ज़िन्दगी को तुम भी दरया की तरह करलो रवां,
सब्ज़ा-ज़ारों सा जहाँ को लहलहाता पाओगे.
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क़ल्ब है शफ्फाफ़ तो दैरो-हरम सब हैं वहाँ,
वो परागंदा है तो ख़ुद को तमाशा पाओगे.
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शनिवार, 1 नवंबर 2008
जितनी चाहो नफरतें हमसे करो क्या पाओगे
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ग़ज़ल / जितनी चाहो
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3 टिप्पणियां:
तुम समझते हो हमें दुश्मन, चलो दुश्मन सही,
वक़्त आयेगा तो हम जैसों को अपना पाओगे.... bahuta sundar
तुम समझते हो हमें दुश्मन, चलो दुश्मन सही,
वक़्त आयेगा तो हम जैसों को अपना पाओगे.... bahuta sundar
आप मेरे ब्लॉग पर आए, आभारी हूँ. चन्द सावालात पीछा नहीं छोड़ रहे. आपसे भी पूछ रहा हूँ, जवाब का इंतज़ार रहेगा, अगर दे सकें.बंधुवर, यदि आप में संस्कृत, अरबी या हिब्र्यू में लिखे गए इन यातयाम (आउटडेटेड) साहित्य में इतनी आस्था है, तो क्यों नहीं उसके ज़रिये आगे आकर मुल्क में शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न करते. तीनों ज़बानें और उनमें लिखे तथ्य आज के लिए निरर्थक हैं. आज उनकी उपयोगिता तो जाने दीजिये, उनके अस्तित्व में आने के वक़्त ही उन पर प्रश्न उठ गए थे, अगर आपको बुद्ध, अबू बकर वगैरह के बारे में मालूम हो.
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