होंटों पे कभी उनके मेरा नाम ही आये.
आये तो सही बर-सरे-इल्ज़ाम ही आये.
हैरान हैं, लब-बस्तः हैं, दिल-गीर हैं गुंचे,
खुश्बू की ज़बानी तेरा पैगाम ही आये.
लम्हाते-मसर्रत हैं तसौवुर से गुरेज़ाँ,
याद आये हैं जब भी गमो-आलाम ही आये.
तारों से सजा लेंगे रहे-शहरे-तमन्ना,
मक्दूर नहीं सुब्ह, चलो शाम ही आये.
यादों के, वफाओं के, अकीदों के, ग़मों के,
काम आये जो दुनिया में तो इस नाम ही आये.
क्या राह बदलने का गिला हमसफ़रों से,
जिस राह चले तेरे दरो-बाम ही आये.
थक-हार के बैठे हैं सरे-कूए-तमन्ना,
काम आये तो फिर जज़्बए-नाकाम ही आये.
बाकी न रहे साख 'अदा' दश्ते-जुनूँ की,
दिल में अगर अंदेशए-अंजाम ही आये.
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मंगलवार, 22 जुलाई 2008
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1 टिप्पणी:
अदा बदायूनी जी की गजल पेश करने का आभार.बहुत बेहतरीन प्रस्तुति...
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