सोमवार, 28 जुलाई 2008

बस करता रहूँगा कर्म / गौरव अवस्थी

आज मैंने सोचा
क्यों न कर लिया जाय धर्म परिवर्तन !
परिवर्तित कर लेने से धर्म
सफल हो सकता है जीवन ।

हिंदू धर्म में मज़ा नही है ,
देवी देवताओं का पता नही है!
कितने यक्ष हैं कितने देवता ,
इनकी तो कोई थाह नही है !

कॉलेज की किताबें कम नही ,
फिर वेद पुराण पढने का समय कहाँ ?
ब्रह्मचर्य का पालन कर के
बनना नहीं है मुनिदेव !

फ़िर सोचा क्यों न मुस्लिम बन जाऊँ ,
महीने भर रोजा रक्खूं
और खूब बकरे खाऊन
रोज़ सुबह से शाम पाँच बार ,
अल्लाह अल्लाह पुकारूं !

न जाने कितनी बार ,
ताजियों के साथ मातम मनाऊंगा !
कहीं गलती से शिया बन गया,
तो सुन्नियों के हाथों मारा जाऊंगा!

फ़िर सोचा की सिक्ख बन जाऊंगा,
दाढ़ी अपनी लम्बी करूँगा,
और मूछें भी नही कटवाऊंगा !
पंजाब के अमृतसर में जा कर,
मक्के दी रोटी और सरसों का साग खाऊँगा!

तभी एक मोटे अकाली ने कहा,
हड्डियाँ तो हैं इसमें, पर मांस कहाँ है सारा?
कहीं दोबारा मरी कोई इंदिरा,
तो बेमौत मारा जाएगा बेचारा!

तभी एक ईसाई धर्म प्रचारक बोले,
की बन जाओ ईसाई!
जिंदा बच गए बेटा,
तो करोगे खूब कमाई!

बने ईसाई तो धन कमाओगे खूब सारा,
लेकिन गए गुजरात और उडीसा,
तो कोई रक्षक नही तुम्हारा!
हम घबराए, कुछ सकुचाये,
बोले, काहे डराते हो भाई?
वो बोला, गुजरात और उडीसा में
क्रिश्चियंस की होती है पिटाई!

तो बैठे-बैठे ही हमने सोच लिया,
कि नही बदलूँगा धर्म!
चिंता नही करूँगा फल की,
बस करता रहूँगा कर्म!
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