1. पतवार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड़ में साहस खोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिटटी के पुतले मानव ने
कभी न मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
सागर की अपनी क्षमता है
पर माझी भी कब थकता है
जब तक हाथों में स्पंदन
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
2. विवशता
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था.
गति मिली, मैं चल पड़ा,
पथ पर कहीं रुकना मना था
राह अनदेखी, अजाना देश,
संगी अनसुना था.
चाँद सूरज की तरह चलता,
न जाना रात दिन है
किस तरह हम-तुम गए मिल,
आज भी कहना कठिन है.
तन न आया माँगने अभिसार
मन ही जुड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था.
देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छुपाये
मुख-कली भी मुस्कुराई
एक क्षण को थम गए डैने
समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर
आगई आंधी सदल-बल
डाल झूमी, पर न टूटी
किंतु पंछी उड़ गया था
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था.
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सोमवार, 14 जुलाई 2008
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