पाँच ग़ज़लें
[ 1 ]
आँख से दूर न हो दिल से उतर जायेगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जायेगा
इतना मानूस न हो खिल्वते-गम से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जायेगा
तुम सरे-राहे-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-रफाक़त से उतर जायेगा
ज़िंदगी तेरी अता है तो ये जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जायेगा
डूबते डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं, कोई तो साहिल पे उतर जायेगा
ज़ब्त लाजिम है मगर दुःख है क़यामत का 'फ़राज़'
जालिम अबके भी न रोयेगा तो मर जायेगा
[ 2 ]
खामोश हो क्यों दादे-जफ़ा क्यों नहीं देते
बिस्मिल हो, तो कातिल को दुआ क्यों नहीं देते
वहशत का सबब रौज़ने-जिनदाँ तो नहीं है
महरो-महो-अंजुम को बुझा क्यों नहीं देते
इक ये भी तो अंदाज़े-इलाजे-गमे-जाँ है
ऐ चारागरो दर्द बढ़ा क्यों नहीं देते
मुंसिफ हो अगर तुम तो कब इन्साफ करोगे
मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यों नहीं देते
रह्ज़न हो तो हाजिर है मताए-दिलो-जाँ भी
रहबर हो तो मंजिल का पता क्यों नहीं देते
क्या बीत गई अबके 'फ़राज़' अहले-चमन पर
याराने-क़फ़स मुझको सदा क्यों नहीं देते
[ 3 ]
इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं
इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएं कीमिया हो जाएं
अबके गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिप्तें तेरी क़बा हो जाएं
बंदगी हमने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएं
[ 4 ]
अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
ढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलें
तू खुदा है न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
दोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें
आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों पर
क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
अब न वो मैं हूँ न तू है न वो माजी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख्स तमन्ना के सराबों में मिलें
[ 5 ]
बदन में आग सी चेहरा गुलाब जैसा है
के ज़हरे-गम का नशा भी शराब जैसा है
कहाँ वो कुर्ब के अब तो ये हाल है जैसे
तेरे फिराक का आलम भी ख्वाब जैसा है
इसे कभी कोई देखे कोई पढे तो सही
दिल आइना है तो चेहरा किताब जैसा है
'फ़राज़' संगे-मलामत से ज़ख्म-ज़ख्म सही
हमें अज़ीज़ है, खानाखाराब, जैसा है.
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रविवार, 15 जून 2008
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3 टिप्पणियां:
bahut hi behtarin nayab gazalon ki collection,pehli aur aakhari khas pasnad aayi.
bahut shukriyaa..ek saath itna kuch..itna achha...
बंदगी हमने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब खुदा हो जाएं
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वाह!
शुक्रिया.
डा. चंद्रकुमार जैन
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