सात ग़ज़लें
[ 1 ]
असर उसको ज़रा नहीं होता
रंज, राहत फज़ा नहीं होता
तुम हमारे किसी तरह न हुए
वरना दुनिया में क्या नहीं होता
नारसी से द'आम रुक तो रुक
मैं किसी से खफा नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
हाले-दिल यार को लिखूं क्योंकर
हाथ दिल से जुदा नहीं होता
क्यों सुने अर्ज़े- मुज्तरिब मोमिन
सनम आख़िर खुदा नहीं होता
[ 2 ]
नावक अंदाज़ जिधर दीदए- जानां होंगे
नीम बिस्मिल कई होंगे, कई बेजां होंगे
ताबे-नज्जारा नहीं आइना क्या देखने दूँ
और बन जायेंगे तस्वीर जो हैरां होंगे
फिर बहार आये, वही दश्त-नवर्दी होगी
फिर वही पाँव, वही खारे-मुगीलां होंगे
नासिहा दिल में तू इतना तो समझ अपने के हम
लाख नादां हुए, क्या तुझसे भी नादां होंगे
तू कहाँ जायेगी कुछ अपना ठिकाना कर ले
हम तो कल ख्वाबे -अदम में शबे-हिजरां होंगे
एक हम हैं के हुए ऐसे पशेमान के बस
एक वो हैं के जिन्हें चाह के अरमां होंगे
मिन्नते-हज़रते- ईसा न उठाएंगे कभी
ज़िंदगी के लिए शर्मिंदए- एहसां होंगे
उम्र तो सारी कटी इश्के-बुतां में मोमिन
आख़िरी वक्त में क्या ख़ाक मुसलमां होंगे
[ 3 ]
मार ही डाल मुझे चश्मे-अदा से पहले
अपनी मंज़िल को पहोंच जाऊं क़ज़ा से पहले
हश्र के रोज़ मैं पूछूँगा खुदा से पहले
तू ने रोका नहीं क्यों मुझको खता से पहले
ऐ मेरी मौत ठहर उनको ज़रा आने दे
ज़हर का जाम न दे मुझको दवा से पहले
हाथ पहोंचे भी न थे जुल्फे-दोता तक मोमिन
हथकडी डाल दी जालिम ने खता से पहले
[ 4 ]
रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह
न ताब हिज्र में है न आराम वस्ल में
कमबख्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह
गर चुप रहें तो हम गमे-हिजरां से छूट जाएं
कहते तो हैं भले को वो, लेकिन बुरी तरह
न जाए वां बने है न बिन जाए चैन है
क्या कीजिये हमें तो है मुश्किल सभी तरह
लगती हैं गालियाँ भी तेरी मुझको क्या भली
कुर्बान तेरे, फिर मुझे कह ले इसी तरह
हूँ जां-बलब बुताने-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं मोमिन इसी तरह
[ 5 ]
ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम
पर क्या करें के हो गए मजबूर जी से हम
हम से न बोलो तुम, इसे क्या कहते हैं भला
इन्साफ कीजे, पूछते हैं आप ही से हम
क्या गुल खिलेगा देखिये है फ़स्ले-गुल तो दूर
और सूए-दश्त भागते हैं कुछ अभी से हम
क्या दिल को ले गया कोई बेगाना आशना
क्यों अपने जी को लगते हैं कुछ अजनबी से हम
[ 6 ]
वो जो हम में तुम में करार था, तुम्हें याद हो के न याद हो
वही यानी वादा निबाह का, तुम्हें याद हो के न याद हो.
वो नये गिले, वो शिकायतें, वो मज़े-मज़े की हिकायतें
वो हरेक बात पे रूठना, तुम्हें याद हो के न याद हो
कोई बात ऐसी अगर हुई, जो तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयां से पहले ही भूलना, तुम्हें याद हो के न याद हो
सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझसे था आपका
वो निबाहने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हमसे तुमसे भी राह थी
कभी हम भी तुम भी थे आशना, तुम्हें याद हो के न याद हो
हुए इत्तेफाक से गर बहम , वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिल- ए- मलामते-अक़रबा, तुम्हें याद हो के न याद हो
कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू, तो इशारतों ही से गुफ्तुगू
वो बयान शौक़ का बरमाला, तुम्हें याद हो के न याद हो
वो बिगाड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का
वो नहीं नहीं की हरेक अदा, तुम्हें याद हो के न याद हो
जिसे आप गिनते थे आशना, जिसे आप कहते थे बावफा
मैं वही हूँ मोमिने-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो
[ 7 ]
शब, तुम जो बज्मे-गैर में, आँखें चुरा गए
खोये गए हम ऐसे, के अगयार पा गए
मजलिस में उसने पान दिया अपने हाथ से
अगयार सब्ज़-बखत थे, हम ज़ह्र खा गए
गैरों से हो वो पर्दानशीं क्यों न बे-हिजाब
दम-हाय बे-असर मेरा परदा उठा गए
दुनिया से मैं गया जो नहीं नाज़ से कहा
अब भी गुमाने-बद न गए तेरे, या गए
ऐ मोमिन आप कब से हुए बंदए -बुतां
बारे हमारे दरमियाँ हजरत भी आगये
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शुक्रवार, 13 जून 2008
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