शुक्रवार, 13 जून 2008

पसंदीदा शायरी / पं. ब्रिज नारायन चकबस्त

ग़ज़ल
दर्दे-दिल पासे-वफ़ा जज़्बए-ईमाँ होना
आदमीयत है यही औ यही इन्साँ होना
नौ-गिरफ्तारे-बला तर्जे-फुगाँ क्या जानें
कोई नाशाद सिखा दे उन्हें नालाँ होना
रह के दुनिया में है यूं तर्के-हवस की कोशिश
जिस तरह अपने ही साए से गुरेजाँ होना
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़हूरे-तरतीब
मौत क्या है, इन्हीं अज्ज़ा का परीशाँ होना
दिल असीरी में भी आज़ाद है आज़ादों का
वल्वलों के लिए मुमकिन नहीं ज़िनदाँ होना
गुल को पामाल न कर लालो-गुहर के मालिक
है इसे तुर्रए - दस्तारे - ग़रीबाँ होना
है मेरा ज़ब्ते- जुनूँ जोशे - जुनूँ से बढ़कर
नंग है मेरे लिए चाक - गरीबाँ होना
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