सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आँखें चित्र-पटल होती हैं

आँखें चित्र-पटल होती हैं।
इसी लिए चंचल होती हैं।
जब भी चित्त व्यथित होता है,
ये भी साथ सजल होती हैं॥
मेरी, उसकी सबकी आँखें,
ठेस लगे, विह्वल होती हैं॥
मन की बातें सुन लेती हैं,
आँखें कुछ पागल होती हैं॥
हमें भनक सी लग जाती है,
जो घटनाएं कल होती हैं॥
पनघट की कविताओं वाली,
पनिहारिनें चपल होती हैं॥
पिता हिमालय कम होते हैं,
माएं गंगा जल होती हैं॥
संकल्पों की सब देहलीज़ें ,
स्थिर और अटल होती हैं॥
समय के पाँव कुचल जाते हैं,
आशाएं मख़मल होती हैं॥
कोई ग़ज़ल नहीं कहता मैं,
सब मेरा ही बदल होती हैं॥
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4 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

पिता हिमालय कम होते हैं,
माएं गंगा जल होती हैं॥

माएं गंगा जल होती हैं पर जरूरत के समय मांए ही हिमालय भी हो जाती हैं
क्या खूब लिखा है

दिलीप ने कहा…

पिता हिमालय कम होते हैं,
माएं गंगा जल होती हैं॥ yahan himalay sam to nhi hai....dekhiyega...waise lajawaab

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

जीवन और जगत ने कहा…

sach kaha hai. Akeli maa bachche ki achhi tarah dekhbhal kar sakti hai par akela pita bachche ko maa aur baap dono ka pyaar nahi de sakta.