सकते में सब थे और भबकता रहा चेराग़्।
तारीकियाँ सी फैल गयीं गुल हुआ चेराग़्॥
उसकी हथेलियों से निकलती थी रोशनी,
दस्ते हिना था या था कोई बा-वफ़ा चेराग़्॥
महसूस कर रहा था मैं आहट सी बार-बार,
कुछ भी नज़र न आया जो रौशन किया चेराग़्॥
इन्साँ के दिल का ख़ौफ़ हैं दुनिया की ज़ुल्मतें,
तू चाहता है चैन तो दिल में जला चेराग़्॥
ख़जर तले भी बुझ न सकी लौ चेराग़ की,
नैज़े की नोक पर भी नुमायाँ रहा चेराग़्॥
ज़र्रात की फ़सीलों पे बिखरी हैं आयतें,
इस रेगज़ारे-गर्म पे हैं जा-ब-जा चेराग़॥
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سکتے میں سب تھے اور بھبکتا رہا چراغ
تاریکیاں سی پھیل گئیں گل ہوا چراغ
اس کی ہتھیلیوں سے نکلتی تھی روشنی
دست حنا تھا یا تھا کوئ با وفا چراغ
محسوس کر رہا تھا میں آھٹ سی بار بار
کچھ بھی نظرنہ آیا جو روشن کیا چراغ
انسان کے دل کا خوف ہیں دنیا کی ظلمتیں
توچا ہتا ہے چین تو دل میں جلا چراغ
خنجر تلے بھی کم نہ ہوئی لو چراغ کی
نیزے کی نوک پر بھی نمایاں رہا چراغ
ذرّات کی فصیلوں پہ بکھری ہیں آیتیں
اس ریگ زار گرم پہ ہیں جا بہ جا چراغ
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1 टिप्पणी:
इन्साँ के दिल का ख़ौफ़ हैं दुनिया की ज़ुल्मतें,
तू चाहता है चैन तो दिल में जला चेराग़्॥
बहुत खूब लिखा है आपने ! दिल और दिमाग को रौशन करने वाली रचना ! बधाई और आभार !
http://sudhinama.blogspot.com
http://sadhanavaid.blogspot.com
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