उपनिषदों में तलाशो हमें के हम हैं वहाँ ॥
बलंदियाँ वो जिन्हें पाने की तमम्ना है।
हमारे जैसों के कितने ही सर क़लम हैं वहाँ ॥
न तुम से पार कभी होगा इश्क़ का दरिया।
के तश्नालब कई गिर्दाबे-चश्मे-नम हैं वहाँ॥
वो जंगलात जहाँ क़ैस का बसेरा है,
वहाँ न जाना, हज़ारों ही पेचो-ख़म हैं वहाँ॥
तलाश जारी है सी मुर्ग़ की परिन्दों में,
ये जानते हुए ख़तरात दम-ब-दम हैं वहाँ॥
बशर के रिश्ते से मेराजे-अब्दहू हैं हम,
रुबूबियत है जहाँ मिस्ले-नूर ज़म हैं वहाँ॥
1 टिप्पणी:
बहुत सुन्दर लगी ।
एक टिप्पणी भेजें