रविवार, 7 मार्च 2010

तवील होती हैं क्यों आजकल शबें बेहद

तवील होती हैं क्यों आजकल शबें बेहद।
ये कौन है जो बढ़ाता है उल्झनें बेहद॥
ज़माने को नहीं शायद अब एक पल भी क़रार,
अजीब हाल है लेता है कर्वटें बेहद॥
कहीं भी जाओ मयस्सर नहीं ज़रा भी सुकूं,
कोई भी काम करो हैं रुकावटें बेहद॥
ख़बर भी है के गढे जा रहे हैं क्या क़िस्से,
हमारे हक़ में है बेहतर न हम मिलें बेहद॥
ये चन्द-रोज़ा इनायात क्यों हैं मेरे लिए,
मैं ख़ुश हूं अपनी ग़रीबी के हाल में बेहद्॥
जिन्हें था इश्क़ वो दुनिया में अब भी ज़िन्दा हैं,
मिलेगा क्या हमें करके इबादतें बेहद्॥
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तवील=लम्बी ।शबें=रातें । क़रार=चैन,सुकून ।मयस्सर=उपलब्ध ।इनायात=कृपाएं ।

2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

ये चन्द-रोज़ा इनायात क्यों हैं मेरे लिए,
मैं ख़ुश हूं अपनी ग़रीबी के हाल में बेहद्॥

जिन्हें था इश्क़ वो दुनिया में अब भी ज़िन्दा हैं,
मिलेगा क्या हमें करके इबादतें बेहद्॥
वाह बहुत खूब उर्दू के शब्दों के अर्थ दे कर बहुत अच्छा किया। गज़ल की खूबसूरती देखने मे आसानी रहती है। बहुत अच्छी लगी गज़ल। शुभकामनायें

रानीविशाल ने कहा…

Aadarniya,
sabse pahale to aapko dil se shukriya urdu shabdo ke artha dene ke liye ..do din se vyast thi aaj hi dekha.Ab to aapko padana ek adat sa ban gaya hai ...
Bahut bahut dhanywaad!
Aaj ki Gazal to mujhe aisi lagi ki ek do sher nahi ek ek sher comment me dal kar usaki tarif karu...bahut bhayiya gazal.
Sadar