ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / तवील होती हैं क्यों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / तवील होती हैं क्यों लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 7 मार्च 2010

तवील होती हैं क्यों आजकल शबें बेहद

तवील होती हैं क्यों आजकल शबें बेहद।
ये कौन है जो बढ़ाता है उल्झनें बेहद॥
ज़माने को नहीं शायद अब एक पल भी क़रार,
अजीब हाल है लेता है कर्वटें बेहद॥
कहीं भी जाओ मयस्सर नहीं ज़रा भी सुकूं,
कोई भी काम करो हैं रुकावटें बेहद॥
ख़बर भी है के गढे जा रहे हैं क्या क़िस्से,
हमारे हक़ में है बेहतर न हम मिलें बेहद॥
ये चन्द-रोज़ा इनायात क्यों हैं मेरे लिए,
मैं ख़ुश हूं अपनी ग़रीबी के हाल में बेहद्॥
जिन्हें था इश्क़ वो दुनिया में अब भी ज़िन्दा हैं,
मिलेगा क्या हमें करके इबादतें बेहद्॥
**********
तवील=लम्बी ।शबें=रातें । क़रार=चैन,सुकून ।मयस्सर=उपलब्ध ।इनायात=कृपाएं ।