मंगलवार, 2 मार्च 2010

अहसास के तमग़े लिए

अहसास के तमग़े लिए।
जीता हूं मैं किस के लिए॥
अब याद कुछ आता नहीं,
कब किसने क्या वादे लिए॥
ख़्वाबों को था जब टूटना,
ग़फ़लत में क्यों फेरे लिए॥
मुर्दों की बेहिस भीड़ में,
जीते रहे धड़के लिए॥
क्या दूं हिसाबे-ज़िन्दगी,
अवराक़ हूं सादे लिए॥
भटकीं मेरी तनहाइयाँ,
दामन में कुछ रिश्ते लिए॥
उसके लिए हैं राहतें,
बेचैनियाँ मेरे लिए॥
आरिज़ ग़मों के खिल उठे,
ज़ख़्मों के जब बोसे लिए॥
दिल में दुआए-ख़ैर है,
सीने में हूं नग़मे लिए॥
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3 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या कहूँ , निशब्द कर दिया आपने अपनी रचना से , आपको बहुत-बहुत बधाई इस सुन्दर व दिल को छू लेने वाली रचना के लिए ।

निर्मला कपिला ने कहा…

भटकीं मेरी तनहाइयाँ,
दामन में कुछ रिश्ते लिए॥
उसके लिए हैं राहतें,
बेचैनियाँ मेरे लिए॥
वाह वाह पूरी गज़ल बहुत अच्छी है कुछ शेर जो मुझे अपने से या दिल के करीब लगते हैं बस उन्हें कोट कर देती हूँ। इसका ये अर्थ नही कि बाकी शेर कुछ कमतर है। आपकी गज़लें कमाल हैं। शुभकामनायें

Udan Tashtari ने कहा…

भटकीं मेरी तनहाइयाँ,
दामन में कुछ रिश्ते लिए॥

-अह्ह!! वाह! बहुत खूब!