मंगलवार, 20 मई 2008

अलीगनामा की दो नज्में / ज़ैदी जाफ़र रज़ा

1. बहरूपियों का मर्तबा
तशरीफ़ लाये हज़रते यूसुफ हमीद आज
कहने लगे के इन दिनों अच्छा नहीं मिज़ाज
मैंने कहा के बात हुई क्या जनाबे-मन
बोले के क्या बताऊँ के फुंकता है तन-बदन
उल्लू की दुम हैं फ़ाख्ता जो लोग आज कल
हर रोज़ बुनके लाते हैं ख़्वाबों का एक महल
फिर उस महल को भरते हैं गीबत के रंग से
जादू चलाना चाहते हैं घटिया ढंग से
दिलचस्प बात ये है के सुनते हैं उनकी बात
वो लोग हैं बलंद बहोत जिनके मरताबात
अब आप ही बताइए जो भी हो बाशऊर
सर धुन के रह न जाए तो फिर क्या करे हुज़ूर
मैंने कहा के गुस्से को अब थूक दीजिए
हैं रोम में तो रोमियों जैसा ही कीजिए
बोले के वाह खूब कहा आपने जनाब
लाजिम है ऐसे रोम पे अल्लाह का इताब
अब देखिए न एक हैं अल्लाह बख्श खाँ
शोबे के सद्रो-डीन फैकल्टी भी हैं मियाँ
ज़ौजा जनाब की भी इसी जामिया में हैं
दोनों खुदा के फज्ल से अहले-वफ़ा में हैं.
दर अस्ल इन दिनों है वफ़ा बस मुसाहिबी
चालाक जो हैं करते हैं चौकस मुसाहिबी
ये जोडा जिसका ज़िक्र किया मैंने आप से
बढ़-चढ़ के आज कल हैं बहोत इसके हौसले
बैरूनी मुल्क में थी अभी एक कानफरेंस
अल्लाह बख्श लेके उसे थे बहोत ही टेन्स
कुछ दौड़-धूप करके हुए आप कामयाब
फिल्फौर जामिया ने किया उनका इन्तिखाब
तारीखें ऐसी पड़ गयीं इस कानफरेंस की
इनमें ही डीन होने की आफत थी आ फँसी
की जोड़-तोड़ कुर्सी पे मक्बूज़ हो गए
गो ख़त्म कानफरेंस थी शामिल मगर हुए
शिरकत की लेके आए सनद अपने साथ-साथ
खुश थे के हमने मार लिए दोनों सम्त हाथ
अल्लाह की है शान अजब, बात खुल गई
दब जाए सारा मामला कोशिश बहोत हुई
दिखलाया अपना जौजए मौसूफ़ ने कमाल
हैं शेखे-दर्स्गाह बहोत नेको-खुश-खिसाल
पहोंचीं वो बारगाह में उनकी बचश्मे-नम
बोलीं के बेगुनाहों पे होता है क्या सितम
शौहर मेरे, हुज़ूर के हैं बावाफाओं में
ख्वाहिश है दुश्मनों की घिरें वो बालाओं में
एक साहिबा सितारा जबीं हैं जो शक्ल से
मशहूर है, क़रीब हैं इज्ज़त-मआब के
अल्लाह जाने रखती हैं किस बात की जलन
शौहर को मेरे कहती हैं बातिल व हक-शिकन
इल्जाम उनका है के मेरे शौहरे हज़ीं
मुतलक भी कानफरेंस में शामिल हुए नहीं
मुह्तार्मा की नज़र में सनद भी है मज़हका
महफ़िल में ज़िक्र करके लगाती हैं क़हक़हा
कीजे उन्हें खामोश खुदारा किसी तरह
रखिए वकार आप हमारा किसी तरह
आंखों से अश्क छलके तो आरिज़ पे आ गए
इज्ज़त मआब देख के ये थरथरा गए
बोले के मैडम आप परीशां न हों ज़रा
मुझको ख़याल पूरा है अल्लाह बख्श का
सुनना था ये के चेहरए -बेजान खिल उठा
जादू चला के कल्बे-मुसलमान खिल उठा
सुनता रहा बगौर मैं ये दास्ताँ तमाम
दिल ने कहा के ऐसे हैं घपले यहाँ तमाम
अच्छी तरह से जानते हैं शेखे-दर्स्गाह
पर क्या करें, मुरव्वतें हैं दिल में बेपनाह
कुछ लोग अश्क भरके तो कुछ लेके भर्रियाँ
अच्छी तरह से काटते हैं ज़िंदगी यहाँ
दर अस्ल शेखे-जामिया हैं इतने नेक-खू
सबसे तअल्लुकात की रखते हैं आबरू
कुछ भी नहीं है फर्क सियाहो-सफ़ेद का
बहरूपियों का खूब यहाँ पर है मर्तबा
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2. अगवा
शोर था उस्ताद की बेगम का अगवा हो गया
क्या गज़ब है देखिए कैसा तमाशा हो गया
गुंडा-गर्दी की भी आख़िर कोई हद है या नहीं
दुश्मनी मीयाँ से थी बीवी पे हमला हो गया
सानहे की दर्ज थाने में हुई चट-पट रिपोर्ट
और अख्बारत में फिल्फौर चर्चा हो गया
बायाँ बाजू था मुखालिफ, शेखे-दानिश्गाह का
वाकए को ले उड़ा, कुछ ज़ोर तगड़ा हो गया
आ गई चश्मे-ज़दन में तेज़ हरकत में पुलिस
जीपें दौडीं मुखतलिफ सम्तों का दौरा हो गया
इब्तदा से आगई तफ्तीश में संजीदगी
रास्तों में हर तरफ़ पूलिस का नाका हो गया
लोग हमदर्दी जताने आए घर उस्ताद के
अहमियत बढ़ने लगी हर सू तहलका हो गया
जम के लीं दिल्चास्पियाँ हर तरह से अहबाब ने
दावतें लोगों ने खायीं, ज़िबह बकरा हो गया .
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